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याभि॑: सुदानू औशि॒जाय॑ व॒णिजे॑ दी॒र्घश्र॑वसे॒ मधु॒ कोशो॒ अक्ष॑रत्। क॒क्षीव॑न्तं स्तो॒तारं॒ याभि॒राव॑तं॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yābhiḥ sudānū auśijāya vaṇije dīrghaśravase madhu kośo akṣarat | kakṣīvantaṁ stotāraṁ yābhir āvataṁ tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याभिः॑। सु॒दा॒नू॒ इति॑ सुऽदानू। औ॒शि॒जाय॑। व॒णिजे॑। दी॒र्घऽश्र॑वसे। मधु॑। कोशः॑। अक्ष॑रत्। क॒क्षीऽव॑न्तम्। स्तो॒तार॑म्। याभिः॑। आव॑तम्। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:112» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:35» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे दोनों किसके लिये क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुदानू) अच्छे प्रकार दान करनेवाले (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक विद्वानो ! (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षाओं से (दीर्घश्रवसे) जिसके बड़े-बड़े विद्यादि पदार्थ, अन्न और धन विद्यमान उस (वणिजे) व्यवहार करनेवाले (औशिजाय) उत्तम बुद्धिमान् के पुत्र के लिये (कोशः) मेघ (मधु) मधुर गुणयुक्त जल को (अक्षरत्) वर्षता वा तुम (याभिः) जिन रक्षाओं से (कक्षीवन्तम्) उत्तम सहाय से युक्त (स्तोतारम्) विद्या के गुणों की प्रशंसा करनेवाले जन की (आवतम्) रक्षा करो (ताभिरु) उन्हीं रक्षाओं से सहित हमारी रक्षा करने को (स्वागतम्) अच्छे प्रकार शीघ्र आया कीजिये ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को योग्य है कि जो द्वीप-द्वीपान्तर और देश-देशान्तर में व्यापार करने के लिये जावें-आवें, उनकी रक्षा प्रयत्न से किया करें ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कस्मै किं कुर्य्यातामित्याह ।

अन्वय:

हे सुदानू अश्विना याभिरूतिभिर्दीर्घश्रवसे वणिज औशिजाय कोशो मध्वक्षरद् याभिर्वा युवां कक्षीवन्तं स्तोतारमावतं ताभिरु ऊतिभिरस्मान् रक्षितुं स्वागतम् ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (याभिः) (सुदानू) सुष्ठुदानकर्त्तारौ (औशिजाय) मेधाविपुत्राय। उशिज इति मेधाविना०। निघं० ३। १५। (वणिजे) व्यवहर्त्तुं शीलाय (दीर्घश्रवसे) दीर्घाणि महान्ति श्रवांसि विद्यादीन्यन्नानि धनानि वा यस्य तस्मै। श्रव इत्यन्नना०। निघं० २। ७। धननामसु च। २। १०। (मधु) मधुरं जलम् (कोशः) मेघः। कोश इति मेघना०। निघं० १। १०। (अक्षरत्) क्षरति (कक्षीवन्तम्) प्रशस्ताः कक्षाः सहाया विद्यन्ते यस्य तम् (स्तोतारम्) विद्यागुणस्तावकम् (याभिः) अन्यत्पूर्ववत् ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषाणां योग्यमस्ति ये द्वीपद्वीपान्तरे वा देशदेशान्तरे व्यापारकरणाय गच्छेयुरागच्छेयुश्च तेषां रक्षा प्रयत्नेन विधेया ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे द्वीपद्वीपांतरी व देशदेशांतरी व्यापार करण्यासाठी जातात-येतात. त्यांचे रक्षण राजपुरुषांनी प्रयत्नपूर्वक करावे. ॥ ११ ॥